ताज महल की दीवार से ठीक लगा हुआ है एक
श्मशान जहां औसतन हर रोज़ 20 शवों को जलाया जाता है. उसका धुंआ भी सीधे तौर
पर ताज महल की मुख्य इमारत से टकराता है.
पुरातत्वविद कहते हैं कि ताज महल की नींव
180 कुँओं और लकड़ी के चबूतरों पर टिकी है जिसे पूरे साल पानी चाहिए. सिर्फ
ताज महल के गुम्बद का वज़न 12,500 टन बताया जाता है. इसका मतलब है की इमारत
की नींव को हमेशा मज़बूत रहना होगा.
खंडेलवाल कहते हैं, "जब 12,500 टन सिर्फ गुम्बद का वज़न है तो बाक़ी की इमारत के वज़न का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इतनी वज़नदार इमारत की नींव भी उतनी ही मज़बूत रहनी चाहिए."
इतिहासकार प्रोफ़ेसर रामनाथ अपनी किताब में लिखते हैं कि मुग़लों की ज़्यादातर इमारतों को अगर देखा जाए तो वो बाग़ के बीच-ओ-बीच हैं. मगर ताज महल सिर्फ ऐसी इमारत है जिसे बाग़ के एक कोने में बनाया गया है. वो भी उस कोने पर जो यमुना का किनारा है. ये इसलिए ताकि ताज महल में कुओं और साल की लड़की की नींव को बारहों महीने पानी मिलता रहे.
अगर ताज महल की नींव को पानी नहीं मिला तो नीचे की लकड़ी सूख जायेगी और मुहब्बत की निशानी के दरक जाने की आशंका बढ़ जाएगी.
पर्यावरणविद्द एम सी मेहता ने जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है उसमे कहा गया है कि वायु प्रदूषण और यमुना के सूखने, उसमे औद्योगिक और घरेलू कूड़ा फेंके जाने की वजह से ताज महल की नींव कमज़ोर होती जा रही है. वीं सदी में 'नेशनल हाइवे' नहीं होने की वजह से ज़्यादातर कारोबार और सफ़र नदी के माध्यम से होता था. इस लिए आगरा को ‘सिटी ऑफ़ वेनिस’ भी कहा जाता था. मगर जैसे-जैसे आबादी बढती चली गई और उद्योग पनपे, यमुना पर डैम और बराज बन गए. हरियाणा का हथनीकुंड और मथुरा इसके उदाहरण हैं.
दिल्ली से लेकर आगरा तक हज़ारों उद्योगों और कल-कारखानों का कचरा सीधे यमुना में बहकर आता है और फिर वो ताज महल के आस पास आकर ठहर जाता है.
ब्रज खंडेलवाल कहते हैं कि अगर ताज महल को बचाना है तो यमुना को बचाना होगा और उसे अपने पुराने रूप में लाना होगा– यानी ताज महल को भी उसके हिस्से का पानी मिलना चाहिए यमुना से और इसके लिए उसका कोटा निर्धारित किया जाना चाहिए. रज खंडेलवाल कहते हैं: "रेगिस्तान तेज़ी से आगरा की तरफ़ राजस्थान से बढ़ रहा है. रेतीली आंधी ताज महल के संग-ए-मरमर को नुक़सान पहुंचा रही है, उसे खुरदुरा बना रही है. यमुना के गंदे पानी के कीड़े उड़कर ताज महल पर जा बैठते हैं. इन कीड़ों के मल की वजह से ताज महल बदरंग हो रहा है. रेतीली आंधी को रोका जा सकता है. रेगिस्तान को आगरा की तरफ बढ़ने से रोका जा सकता है. इसके लिए चाहिए घने पेड़ों की दीवारें. ये कोई आज की बात नहीं है. पिछले कुछ सालों में अगर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया होता तो आज रेतीली आंधी ताज महल तक नहीं जा पाती. उसे पेड़ रोक लेते. मगर ऐसा नहीं किया गया."
ताज महल पर प्रदूषण की मार की वजह से जिन पत्थरों का नुकसान हुआ या जो दरारें पड़ीं उनकी मरम्मत का ज़िम्मा भारतीय पुरातत्व विभाग का है. ये काम भी कई दशकों से चलता आ रहा है. विभाग के सेवानिवृत अधिकारी आरके दीक्षित कहते हैं कि ताज के वास्तविक रंग को बहाल करने के लिए रासायनिक उपचार किया गया. इसके तहत पूरी इमारत पर एक ख़ास तरह का रासायनिक लेप लगाया गया जिससे प्रदूषण का असर कम हो और इमारत में चमक फिर से लौट आए.
मगर पर्यावरणविदों के विरोध के बाद इसे बंद करना पड़ा. पर्यावरण वैज्ञानिकों का दावा है कि रासायनिक लेप की वजह से ताज महल को ज़्यादा नुकसान हुआ है और उसका रंग पहले से भी ज़्यादा पीला पड़ने लगा. सका दूसरा कारण वो बताते हैं ज़्यादा सैलानियों का आना. ज्यादा सैलानियों की वजह से उमस भी ज़्यादा होती है जिसका असर पत्थरों पर पड़ता है.
रासायनिक लेप के विरोध के बाद अब पुरातत्व विभाग मिट्टी का लेप लगा रहा है मगर पर्यावरणविद इससे भी खुश नहीं हैं. उनका मानना है कि मिटटी का लेप संग-ए-मरमर को और भी खुरदुरा बना रहा है जिससे नुकसान हो रहा है. संग-ए-मरमर राजस्थान से आने वाली धूल भरी आंधी को झेल नहीं पा रहा है.
रेगिस्तान तेज़ी से आगरा की तरफ बढ़ रहा है. उसके रोकने का एक ही उपाय है पूरे शहर को घने पेड़ों से घेरना.
आगरा के आयुक्त के मोहन राव को सुप्रीम कोर्ट ने ताज महल और आगरा के धरोहरों को बचाने का ज़िम्मा सौंपा है. वो समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट में अपने रिपोर्ट पेश करते हैं. वो ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन के भी अध्यक्ष हैं. तचीत में राव स्वीकार करते हैं कि शहर के नाले और शहर के घरों से निकल रहा कचरा ही ताज को हो रहे नुकसान का बड़ा कारण है. वो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने कई दलों का गठन किया है जो कचरे के बेहतर प्रबंधन का काम कर रहे हैं. इसके अलावा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए गए हैं जो मल और गंदगी को यमुना में जाने से पहले ही साफ़ कर दें. उन्होंने कहा, “इसके अलावा आगरा को हम स्मार्ट सिटी बनाने वाले हैं जिससे ये समस्याएं हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएँगी.” मार्ट सिटी के प्रस्ताव में आगरा के चारों तरफ पेड़ लगाने की बात कही गई है जिससे रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोका जा सके. ये बातें सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर विज़न डाक्यूमेंट में भी कहीं हैं.
मगर आगरा के लोग इसका विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि जो शहर धरोहर मान लिया जा चुका है उसे स्मार्ट सिटी बनाना ग़लत है. ऐसा करने से वो शहर अपने धरोहर होने की पहचान खो बैठेगा. खंडेलवाल कहते हैं कि धरोहर को अगर बचा लिया जाएगा तो बाक़ी की चीज़ें भी अपने आप बच जाएँगी.
खंडेलवाल कहते हैं, "जब 12,500 टन सिर्फ गुम्बद का वज़न है तो बाक़ी की इमारत के वज़न का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इतनी वज़नदार इमारत की नींव भी उतनी ही मज़बूत रहनी चाहिए."
इतिहासकार प्रोफ़ेसर रामनाथ अपनी किताब में लिखते हैं कि मुग़लों की ज़्यादातर इमारतों को अगर देखा जाए तो वो बाग़ के बीच-ओ-बीच हैं. मगर ताज महल सिर्फ ऐसी इमारत है जिसे बाग़ के एक कोने में बनाया गया है. वो भी उस कोने पर जो यमुना का किनारा है. ये इसलिए ताकि ताज महल में कुओं और साल की लड़की की नींव को बारहों महीने पानी मिलता रहे.
अगर ताज महल की नींव को पानी नहीं मिला तो नीचे की लकड़ी सूख जायेगी और मुहब्बत की निशानी के दरक जाने की आशंका बढ़ जाएगी.
पर्यावरणविद्द एम सी मेहता ने जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है उसमे कहा गया है कि वायु प्रदूषण और यमुना के सूखने, उसमे औद्योगिक और घरेलू कूड़ा फेंके जाने की वजह से ताज महल की नींव कमज़ोर होती जा रही है. वीं सदी में 'नेशनल हाइवे' नहीं होने की वजह से ज़्यादातर कारोबार और सफ़र नदी के माध्यम से होता था. इस लिए आगरा को ‘सिटी ऑफ़ वेनिस’ भी कहा जाता था. मगर जैसे-जैसे आबादी बढती चली गई और उद्योग पनपे, यमुना पर डैम और बराज बन गए. हरियाणा का हथनीकुंड और मथुरा इसके उदाहरण हैं.
दिल्ली से लेकर आगरा तक हज़ारों उद्योगों और कल-कारखानों का कचरा सीधे यमुना में बहकर आता है और फिर वो ताज महल के आस पास आकर ठहर जाता है.
ब्रज खंडेलवाल कहते हैं कि अगर ताज महल को बचाना है तो यमुना को बचाना होगा और उसे अपने पुराने रूप में लाना होगा– यानी ताज महल को भी उसके हिस्से का पानी मिलना चाहिए यमुना से और इसके लिए उसका कोटा निर्धारित किया जाना चाहिए. रज खंडेलवाल कहते हैं: "रेगिस्तान तेज़ी से आगरा की तरफ़ राजस्थान से बढ़ रहा है. रेतीली आंधी ताज महल के संग-ए-मरमर को नुक़सान पहुंचा रही है, उसे खुरदुरा बना रही है. यमुना के गंदे पानी के कीड़े उड़कर ताज महल पर जा बैठते हैं. इन कीड़ों के मल की वजह से ताज महल बदरंग हो रहा है. रेतीली आंधी को रोका जा सकता है. रेगिस्तान को आगरा की तरफ बढ़ने से रोका जा सकता है. इसके लिए चाहिए घने पेड़ों की दीवारें. ये कोई आज की बात नहीं है. पिछले कुछ सालों में अगर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया होता तो आज रेतीली आंधी ताज महल तक नहीं जा पाती. उसे पेड़ रोक लेते. मगर ऐसा नहीं किया गया."
ताज महल पर प्रदूषण की मार की वजह से जिन पत्थरों का नुकसान हुआ या जो दरारें पड़ीं उनकी मरम्मत का ज़िम्मा भारतीय पुरातत्व विभाग का है. ये काम भी कई दशकों से चलता आ रहा है. विभाग के सेवानिवृत अधिकारी आरके दीक्षित कहते हैं कि ताज के वास्तविक रंग को बहाल करने के लिए रासायनिक उपचार किया गया. इसके तहत पूरी इमारत पर एक ख़ास तरह का रासायनिक लेप लगाया गया जिससे प्रदूषण का असर कम हो और इमारत में चमक फिर से लौट आए.
मगर पर्यावरणविदों के विरोध के बाद इसे बंद करना पड़ा. पर्यावरण वैज्ञानिकों का दावा है कि रासायनिक लेप की वजह से ताज महल को ज़्यादा नुकसान हुआ है और उसका रंग पहले से भी ज़्यादा पीला पड़ने लगा. सका दूसरा कारण वो बताते हैं ज़्यादा सैलानियों का आना. ज्यादा सैलानियों की वजह से उमस भी ज़्यादा होती है जिसका असर पत्थरों पर पड़ता है.
रासायनिक लेप के विरोध के बाद अब पुरातत्व विभाग मिट्टी का लेप लगा रहा है मगर पर्यावरणविद इससे भी खुश नहीं हैं. उनका मानना है कि मिटटी का लेप संग-ए-मरमर को और भी खुरदुरा बना रहा है जिससे नुकसान हो रहा है. संग-ए-मरमर राजस्थान से आने वाली धूल भरी आंधी को झेल नहीं पा रहा है.
रेगिस्तान तेज़ी से आगरा की तरफ बढ़ रहा है. उसके रोकने का एक ही उपाय है पूरे शहर को घने पेड़ों से घेरना.
आगरा के आयुक्त के मोहन राव को सुप्रीम कोर्ट ने ताज महल और आगरा के धरोहरों को बचाने का ज़िम्मा सौंपा है. वो समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट में अपने रिपोर्ट पेश करते हैं. वो ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन के भी अध्यक्ष हैं. तचीत में राव स्वीकार करते हैं कि शहर के नाले और शहर के घरों से निकल रहा कचरा ही ताज को हो रहे नुकसान का बड़ा कारण है. वो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने कई दलों का गठन किया है जो कचरे के बेहतर प्रबंधन का काम कर रहे हैं. इसके अलावा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए गए हैं जो मल और गंदगी को यमुना में जाने से पहले ही साफ़ कर दें. उन्होंने कहा, “इसके अलावा आगरा को हम स्मार्ट सिटी बनाने वाले हैं जिससे ये समस्याएं हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएँगी.” मार्ट सिटी के प्रस्ताव में आगरा के चारों तरफ पेड़ लगाने की बात कही गई है जिससे रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोका जा सके. ये बातें सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर विज़न डाक्यूमेंट में भी कहीं हैं.
मगर आगरा के लोग इसका विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि जो शहर धरोहर मान लिया जा चुका है उसे स्मार्ट सिटी बनाना ग़लत है. ऐसा करने से वो शहर अपने धरोहर होने की पहचान खो बैठेगा. खंडेलवाल कहते हैं कि धरोहर को अगर बचा लिया जाएगा तो बाक़ी की चीज़ें भी अपने आप बच जाएँगी.
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